Women's Education- S. Radhakrishnan | Lesson- 6 Prose|| Class- 12 English|| UP-BOARD|| LearnTopicWise

Women's Education- S. Radhakrishnan 


About The Author-

Dr. S. Radhakrishnan, the second president of free India, was born in 1889. He was a great philosopher and statesman. He was also an effective speaker and voluminous writer.  some of his famous books are- 'Indian Philosophy', 'Hindu View of Life', Eastern Relation and western Thought', and 'Philosophy of Upnishads', He died in 1975.  

स्वतंत्र भारत के दूसरे राष्ट्रपति डॉ। एस। राधाकृष्णन का जन्म 1889 में हुआ था। वे एक महान दार्शनिक और राजनेता थे। वे एक प्रभावी वक्ता और प्रखर लेखक भी थे। उनकी कुछ प्रसिद्ध पुस्तकें हैं- 'इंडियन फिलॉसफी', 'हिंदू व्यू ऑफ लाइफ', ईस्टर्न रिलेशन और वेस्टर्न थॉट्स 'और' फिलॉसफी ऑफ उपनिषद ', 1975 में उनकी मृत्यु हो गई।
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About The Lesson-

'Women's Education' has been selected from the book 'True Knowledge' which was published in 1970. It deals with the education of women in India.

'महिला शिक्षा' को 'सच्चा ज्ञान' पुस्तक से चुना गया है जो 1970 में प्रकाशित हुई थी। यह भारत में महिलाओं की शिक्षा से संबंधित है।
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Para- 1:
You are living in an age when there are great opportunities for women in social work, public life, and administration. Society requires women of disciplined minds and restrained manners. Whatever line of work you undertake, you should bring to it an honest, disciplined mind) You will then succeed and have the joy of your work.

आप लोग ऐसे युग में रह रहे हैं जिसमें महिलाओं को सामाजिक कार्य , सार्वजनिक जीवन तथा प्रशासन हेतु महान अवसर हैं । समाज , अनुशासित मस्तिष्क तथा मर्यादित व्यवहारों की महिलाओं की कामना करता है । आप जिस किसी भी कार्य रेखा को अपनाते हैं आपको उसमें एक ईमानदार और अनुशासित मस्तिष्क लगाना चाहिए । तब आपको सफलता और अपने काम का आनन्द प्राप्त होगा ।

Para- 2:
Actually, in our country, education so far as girls' education is concerned is not widespread enough. So every institution which contributes to the education of girls is worthy of recognition and encouragement. But I am anxious that the kind of education that is imparted must not only be broad but should also be deep. We are lacking in depth. We may become learned and skilled, but if we do not have some kind of purpose in our life, our lives themselves become blind, blundering, and bitter. The Gita says vyavasayatmika buddhir ekeha. For a truly cultured mind, there is a single-mindedness, a dedication to a single purpose. For the uncultured mind, the whole life is scattered in many directions-bahusakha hyanantascta. Therefore it is essential that the education which you acquire in these institutions should give you not merely learning and skill but endow you with a definite purpose in life. What that purpose is, you have to define for yourselves. It is said vidya gives you Viveka, vimarsarupini vidya gives you a sense of what is right and helps you to avoid what is wrong. You must try, therefore, to find out wihat required of you in this generation. A purpose which held good centuries ago may not hold good today in view of the rapidly changing conditions of our country and of the world. So the purpose which you adopt in your life must be adapted to the relevant needs of the present generation.

वास्तव में हमारे देश में शिक्षा , जहाँ तक कि बालिकाओं की शिक्षा का सम्बन्ध है , पर्याप्त रूप से प्रसारित नहीं है । इस कारण वह प्रत्येक संस्था , जो बालिकाओं की शिक्षा में योगदान देती है , मान्यता एवं उत्साहवर्द्धन की पात्र है । किन्तु मुझे यह चिन्ता है कि जिस प्रकार की शिक्षा दी जाती है वह केवल विस्तृत ही नहीं अपितु गहरी भी होनी चाहिए । हममें गहराई की कमी है । हम विद्वान तथा कुशल भले ही बन जाएं किन्तु यदि हमारे जीवन में किसी प्रकार का उद्देश्य नहीं है तो हमारे जीवन स्वयं ही अन्ध कारपूर्ण , भयंकर भूलों वाले एवं कटु बन जाएंगे । गीता कहती है : व्यावसायात्मिका बुद्धिएकेह " निश्चयात्मक बुद्धि एक ही है । " वास्तविक रूप में एक सुसंस्कृत मस्तिष्क में एकाग्रता तथा एक एकाकी उद्देश्य के प्रति भक्तिपूर्ण समर्पण होता है असंस्कृत मन के लिए सारा जीवन अनेक दिशाओं में बिखरा हुआ होता है - बहुशाखा ह्यनन्ताश्च । अतः यह आवश्यक है कि जो शिक्षा आप लोगों को इन संस्थाओं में मिलती है उससे आपको न केवल विद्वता एवं कौशल मिले अपितु उससे आपको जीवन का एक निश्चित उद्देश्य मिले । वह उद्देश्य क्या है यह आपको अपने आप परिभाषित करना है । कहा जाता है कि विद्या विवेक देती है , विमर्षरूपिणी विद्या आपको ज्ञान देती है कि अच्छा क्या है और जो बुरा है उससे बचने में सहायता देती है । इसलिए आपको यह जान लेने की अवश्य चेष्टा करनी चाहिए कि इस पीढ़ी में आपसे क्या चाहा गया है । अपने देश एवं संसार की द्रुतगति से बदलती हुई दशाओं को दृष्टि में रखते हुए एक उद्देश्य जो शताब्दियों पूर्व अच्छा माना गया था , आज अच्छा नहीं भी माना जा सकता है । इसलिये जो भी उद्देश्य आप अपने जीवन में अपनाने जा रहे हों उसे वर्तमान पीढ़ी से सम्बन्धित आवश्यकताओं के अनुरूप अपनाया जाना चाहिए ।

Para- 4:
Every time we start, we use our hymns and end with saying santih, santih, santih. The teacher and the pupils are expected to avoid hating each other.

प्रत्येक बार जब हम ( कोई कार्य ) आरम्भ करते हैं तो हम ईश्वर की प्रार्थना करते हैं और यह कहते हुए समाप्त करते हैं - शांतिः , शांतिः शांतिः । गुरु एवं शिष्यों से अपेक्षा की जाती है कि वे एक - दूसरे के प्रति घृणा से बचते रहेंगे ।

Para- 5:
Compassion, Daya, is the quality which is more characteristic of women than of men. I read recently a book that speaks about the decline of womanhood and says that this is so because there is a decline in compassion. In other words, the natural quality of women is compassion. If you do not have compassion, you are not human. It is, therefore, essential for every human being to develop the quality of considerateness, kindness, and compassion. Without these qualities, we are only human animals, Narapasu, not more than that.

दया एक ऐसा गुण है जो पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं में विशेष रूप से होता । अभी हाल ही में मैंने एक पुस्तक पढ़ी जो स्त्रीत्व के ह्रास के बारे में बताती है तथा कहती है कि यह इसलिए है क्योंकि दया का ह्रास हुआ है । दूसरे शब्दों में स्त्री का स्वाभाविक गुण दया है । यदि आप में दया नहीं है तो आप मानव नहीं है । इसलिए प्रत्येक प्राणी के लिए अच्छी बातों का एवं दूसरों के प्रति सहानुभूति की भावना एवं दया का विकास करना आवश्यक है । इन गुणों के अभाव हम केवल नर पशु हैं और इससे अधिक कुछ नहीं हैं ।

Para- 6:
There is a famous verse that tells us, sansara visa vrksasya. In this imperfect world, sansara, there are two fruits of inimitable quality. They are the study of our great classics and communion with great minds. These two are the things which mould men's minds and hearts, I am anxious that our great classics should be studied, the classics of all countries of which we are the inheritors. It is in a small dialogue in a Upanisád that a question is put: What constitutes the essence of the good life?" The teacher replies: 'Didn't you hear the answer?' There was a thunderclap: da da da. Immediately the teacher explained that these were the essence of good life-dama, dana, daya. They constitute the essentials of a good life. You must have dama or self-control, restraint, which is the mark of a human being, In the Ramayana when Lakshmana sets out for the forest, his mother tells him: 'Look upon Rama as your father, Dasaratha: Look upon Sita as myself, as your mother: Look upon the forest as Ayodhya; go, my dear.

एक प्रसिद्ध श्लोक हैं- ' संसार विष वृक्षस्य . .. ' जो हमें बताता है कि संसार विष का वृक्ष है । इस अपूर्ण संसार में अनुपम गुणों से युक्त दो फल होते हैं । ये हैं - अपने महान ग्रन्थों का अध्ययन तथा महान विद्वानों का सत्संग । ये दो बातें हैं जो मनुष्यों मस्तिष्क एवं हृदयों को परिवर्तित कर सकती हैं । मेरी तीव्र इच्छा है कि हमारे प्राचीन ग्रन्थों का , ( बल्कि ) सभी देशों के प्राचीन ग्रन्थों का अध्ययन किया जाना चाहिए ( क्योंकि ) हम उनके उत्तराधिकारी हैं । एक उपनिषद के एक छोटे - से संवाद में एक प्रश्न किया गया है : “ एक अच्छे जीवन का सार क्या है ? " गुरु उत्तर देता है : " क्या तुमने उत्तर नहीं सुना ? " बिजली की गड़गड़ाहट हुई : दा दा दा । गुरु ने तुरन्त स्पष्ट किया कि ये ही अच्छे जीवन के तत्व हैं – दम , दान , दया । ये ही एक अच्छे जीवन आवश्यक तत्व हैं । तुम्हारे पास दम अर्थात् आत्म - नियन्त्रण , संयम होना चाहिए जो मानव प्राणी का लक्षण है । रामायण में जब लक्ष्मण वन के लिए चलते हैं तो उनकी माँ उनसे कहती हैं - " राम को अपने पिता दशरथ के समान मानना , सीता को मेरे - अपनी माँ के समान मानना , जंगल को अयोध्या के समान मानना , मेरे प्रिय , जाओ ।

Para- 7:
There are ever so many thrilling stories in our classics that will instill into us great moral strength, which will lay down for us, the lines on which we have to conduct ourselves.

Give us good women, we will have a great civilization.
Give us good mothers, we will have a great nation.

हमारे ग्रंथों में ऐसी अनेक रोमांचक कहानियाँ हैं जो हममें महान नैतिक शक्ति भर देंगी जो हमारे आगे ऐसी रूपरेखा प्रस्तुत कर देंगी जिन पर हमें चलना होता है ।

हमें अच्छी महिलाएँ प्रदान करो , हमारे पास एक महान सभ्यता होगी ।
हमें अच्छी माताएँ प्रदान करो , हमारे पास एक महान राष्ट्र होगा ।

Para- 8:
When you talk about education, you have several aims in view; give the people, those who are taught, knowledge of the world in which they live-Science, History and Geography enable you to get that knowledge; you also train the people to acquire some technical skill by which they can earn a livelihood. These are still accepted the world over as the objects of education: knowledge of the world in which you live and technical skill by which you can earn a livelihood. But what is there specifically about the kind of education imparted in the institutions of our country? We have heard that the chief purpose of education is not merely the acquiring of skill or information but the initiation into a higher life, initiation into a world that transcends the world of Space and Time, though the latter informs and animates the former. That has been the main purpose of education. For some centuries, we neglected our womenfolk. Our tradition, however, has been somewhat different :

Purakalpesu narinam
mandira vandana niscitah
adhyapananca vedanam
gayatri vacanam taha.

जब आप शिक्षा के बारे में बात करते हैं तो आपकी दृष्टि में अनेक लक्ष्य होते हैं । जिनको शिक्षित किया जाता है उन लोगों को उस दुनिया का ज्ञान दो जिसमें वे रहते हैं - विज्ञान , इतिहास एवं भूगोल आपको उस ज्ञान को पाने के योग्य बनाते हैं , आप कुछ तकनीकी कौशल अर्जित करने के लिए लोगों को प्रशिक्षित करते हैं जिसके द्वारा वे अपनी जीविका का उपार्जन कर सकें । सारे संसार में इनको अभी भी शिक्षा के उद्देश्यों के रूप में माना जाता है : उस संसार का ज्ञान जिसमें कि आप रहते हैं और तकनीकी कौशल जिनके द्वारा आप जीविकोपार्जन कर सकते हैं । किन्तु हमारे देश की संस्थाओं में दी जाने वाली शिक्षा के बारे में विशेषता क्या है ? हमने सुना है कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य केवल कौशल या ज्ञान की प्राप्ति ही नहीं है अपितु उच्चतर जीवन में प्रवेश भी है - ऐसे संसार में प्रवेश कराना जो अन्तरिक्ष तथा समय से परे हो । यद्यपि यहाँ बाद में लिखी गई वस्तु पहली वाली लिखी गई वस्तु के विषय में सूचना देती है और प्रेरित करती है अर्थात् भौतिक संसार ( जिसमें हम रहते हैं ) पारलौकिक संसार के लिए हमें प्रेरणा देता है । शिक्षा का यही मुख्य उद्देश्य रहता रहा है । कुछ शताब्दियों तक हमने अपने स्त्री समाज की अवहेलना को । हमारी परम्परा कुछ भिन्न रही है ।

पुराकल्पेषु नारीनाम् मंदिरा वन्दना निश्चितः : (
अर्थात् प्राचीनकाल में स्त्रियों द्वारा मंदिरों में पूजन करना ,)

अध्यापनांका वेदानाम् गायत्री वचनाम् तथा ।। (वेदों का पठन तथा गायत्री मंत्र का जाप करना अंगीकृत था।)

Para- 9:
In ancient times; our women had the ceremony of upanayana performed for them. They were entitled to a study of Vedas. They have also entitled to the chanting of the Gayatri japa. All these things were open to our women. But our civilization became arrested and one of the main signs of that decay of our civilization is the subjection of women.

प्राचीनकाल में महिलाओं के उपनयन संस्कार हुआ करते थे । उन्हें वेदों के अध्ययन का अधिकार था । उन्हें गायत्री मंत्र जपने का भी अधिकार था । ये सारी बातें हमारी महिलाओं के लिए खुली हुई थीं । किन्तु हमारी सभ्यता बन्धन में आ गई अर्थात् गतिशील न रही और हमारी सभ्यता के पतन के अनेक कारणों में से एक स्त्रियों की पराधीनता है


Para- 10:
After Independence, through the exertions of Mahatma Gandhi, a revolution has been effected in our country, and women are coming into their own. 

स्वतन्त्रता के बाद महात्मा गाँधी के प्रयासों के द्वारा हमारे देश में एक क्रान्ति आई और स्त्रियाँ अपने गौरव को प्राप्त कर रही है। 

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